Sunday, September 25, 2016

प्रेम परिभाषा प्रकृति सी

भानू के उजाले में जमीं देखी है?
हरे पत्तों पर पड़ी नमीं देखी है?

देखा है कभी किरण को बूंदों से पार?
सतरंगी परत अंदर से थमी देखी है?

रवि उदय वो दो पर्वतों के बीच से,
और उन पर सफेदी जमी देखी है?

संध्या में उन सब पेड़ों के बीच,
समीर लहार कभी सहमी देखी है?

देखें कभी खग लंबी कतार से जाते?
वो चहल-पहल, गहमा-गहमी देखी है?

निस्वार्थ प्रकृति की ये मादकता सी,
मेरे जीवन में तुम बिन कमी देखी है?

कभी वो देखा समंदर में सीप अकेला,
उसकी सुंदरता की गलतफहमी देखी है?

किशोर बस कांकर का प्रेमी बावरा,
कभी मूरत अपनी चित में रमी देखी है?


(रवि / भानू = सूर्य, सतरंगी = इंद्रधनुष, सफेदी = बर्फ, संध्या = सायंकाल, खग = पक्षी, कांकर = पत्थर, चित = आत्मा)


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