Thursday, July 14, 2016

कुछ खत पुराने

आज अलमारी खोली, कुछ खत पुराने मिल गए।
फिर से आज रोने को, कुछ नए बहाने मिल गए।

वो पुरानी डायरी में जब, नाम उस का लिखा देखा
कुछ तस्वीरों के साथ-साथ, गुजरे ज़माने मिल गए।

पुराना सूखा गुलाब देखा, पत्तों में बस सोंधी महक
ऐसा लगा मानो तो जैसे, कुछ गड़े खजाने मिल गए।

धूमिल स्याही से लिखे हुए, कलामों के वो आखर थे
गम को बाबस्ता करने, फिर नए ठिकाने मिल गए।

हर कलाम में तेरा नाम, बार-बार ही ज़िकर में था
तेरे लिए हर रात लिखे वो, सारे तराने मिल गए।

देख कर सारे खत, जेहेन में आया वो वक़्त का फेर
जब मेरी ही महफ़िल मुझे, सब तेरे दीवाने मिल गए।

मैं बैठा रहा सालों-साल, बस तेरे आने की आस में
ना मालूम था मुझे की, तुझे नए आशियाने मिल गए।

मन तो है ये सारे खत, आज ही कहीं दफ़न कर दूँ
पर इन्हीं की वजह से मुझे, जीने के बहाने मिल गए।

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