Sunday, May 1, 2016

मेरी वीरता का वो कलाम याद रखना !

मैने पूछा जब क्यों मरता है तू इस बर्फ में
यहाँ तो हम मर रहे हैं जात-पात के फर्क में
आज तेरे नाम पर सब हाय तौबा करेंगे बस
कल तेरा नाम होगा किसी फाइल की गर्त में

तेरे नाम से चंदे उठेंगे, बड़ी-बड़ी मिनार होंगी
चौराहों पर तेरे नाम की एक-दो दिवार होंगी
कुछ समय बाद तेरे नाम पर मोटी धूल होगी
फिर हर वो दिवार जर्जर और बीमार होंगी।

फिर नेता वोट मांगेगा, दलाल नोट मांगेगा
तेरे नाम से कोई कपडा, कोई लंगोट मांगेगा
तेरी हर चीज़ का फिर ये सब मोल लगाएंगे
स्मारक के लिए कोई जूता कोई तेरा कोट मांगेगा

क्यों मर रहा है, मेरा हीरो तो बस सलमान है
उस रात में जो मारा, वो भी तुच्छ समान है !
गुमनामी में जो मर जाता है कोई तो क्या !
मेरा तो बस एक ही पीर वो शाहरुख़ खान है

फिर वो हंसा और बोला, बड़े इत्मीनान से
मुझे कोई लालसा, लालच नही इंसान से
ये घर है मेरा, परिवार और माँ मेरी एक है
मेरी जिंदगी भी फर्क है, और मौत भी शान से

घर के अंदर के झगडे हैं आपस में होते हैं
हर घर में कभी हँसते तो कोई तो रोते हैं
रात को मैं बस दरवाजे पर खड़ा रहता हूँ
और मेरे घरवाले चैन-ओ-सुकून से सोते हैं

चार मेरे भाई हैं, और सब एक माँ के बेटे हैं
आपस में एक दूजे खातिर प्रेम ही समटे हैं
बस डर है तो बहार के कुछ नापाकों का ..!
जो जिव्हा पर लालच की मोटी चादर लपटे हैं

मालूम है, कल सब मेरा नाम भूल जायेंगे
मेरे किये हुए वो तमाम काम भूल जायेंगे
मुझे फर्क नही, क्या याद रखो क्या नहीं
क्या हुआ जो मेरी वो सुबह शाम भूल जायेंगे

मरते तो सब हैं, खुशनसीब शहीद होते हैं
उन ही के तो लोग, बस मुरीद होते हैं ..!
मेरा घर सुरक्षित है, और काफी खुश हूँ मैं
मैं खड़ा हूँ तभी तो त्यौहार - ईद होते हैं !

दुआ के वक़्त बस मेरा नाम याद रखना
मैंने जो किया दुश्मन का अंजाम याद रखना !
ना ऑंखें नम, न ही कोई जाने का गम है
बस मेरी वीरता का वो कलाम याद रखना !

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