Wednesday, April 27, 2016

अब ये सांसे धीमी सी हैं।

सब कुछ है आज, पर जाने क्या कमी सी है,
दर्द भी नहीं है, फिर भी आखों में नमी सी है।

सांसे तो सारी बराबर चलती मालूम सी हैं,
पर लगता है, धड़कन आज फिर थमीं सी हैं।

महसूस हो रहा है, लगातार रक्तस्राव भी तो,
फिर जाने क्यों, ये सारी नसें आज जमी सी हैं।

उठ रहें हैं, बादल ऊंचे - ऊँचे इन ख्यालों में,
शायद, यादों की दिल में गहमा-गहमी सी है।

हम बेखौफ, हर शक्श पर भी भरोसा रखते हैं,
लगता है, अपने ही खून में कोई कमी सी है।

वो, दो पल हमारे साथ में ख़ुशी से बिता बैठे,
और, नजर उनके इन्तजार में सहमीं सी हैं।

फिर, हाल-ए-दिल जो कहा किशोर ने उन से,
वो बोले, तेरा ऐसा कहना ही इक बेशर्मी सी है।

हर बार जैसा मेरा ठिकाना, वही मयखाना,
दो जाम के बाद, अब ये सांसे धीमी सी हैं।

CopyRight @ #‎KishorPoetry‬ मैं इक शायर बदनाम
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