Saturday, July 4, 2015

आस्तिक-नास्तिक (किशोर और सह-मित्र सत्य संवाद)

सत्य घटना:
एक बार मेरे और मेरे मित्र में बहस हो गई, धर्म को लेकर ! हालाकिं मेरे गुरु (हिंदी और उर्दू भाषा के महारथी) ने मुझे ये बताया था की, धर्म पर बहस करने वाले मुर्ख होते हैं ! पर फिर भी मैं उनके वचन विरोध में थोड़ा वार्तालाप कर बैठा ! नीचे दी हुई कविता उस मित्र और मेरे संवाद के अंश हैं ! हालाँकि उस के बाद वो उग्र हो गया और मैंने सिर्फ ये व्यावहारिक अनुभव के लिए किया और जो सत्य हो गया, की धर्म इंसान को या तो उग्रवादी बनता है, या मजबूर और डरपोक!

शीर्षक: आस्तिक-नास्तिक (किशोर और सह-मित्र सत्य संवाद)

ये कहना गलत है की हम नास्तिकता के अँधेरे से भरे हैं
कथन ये उचित होगा की आस्तिकों के चोंचोलों से परे हैं

कुछ कहते हैं की फिर तो तुम कौम विरोधियों में से हो !
तर्क बस की हम तुझ जैसे किसी बाबा के लिए नही गिरे हैं

फिर तुम हमारे वंशजों के पुत्र नही बस प्रतिशोद्दियों में हो
हम भी अनादी आर्यपुत्र हैं और सदैव हिंदुत्व के लिए मरे हैं !

फिर तुम तो खुद की नई दुनिया बना लो इन विचारों से…. (उपहास)
हे ! मित्र अबोध बस पशु प्रविर्ती लोग ही आप आप चरे हैं !!

#‎KishorPoetry‬ मैं इक शायर बदनाम

इन पंक्तियों के माध्यम से बस यही कहना चाहता हूँ, की नास्तिक का अर्थ धर्म विरोधी नही होता, वरन हर वस्तु की सत्यता पर यकीन रखने वाला होता है !

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