Monday, June 29, 2015

तुझे समझाना कैसा

अपनी ज़मीं पर तुम अमीर तो दिखाना कैसा !
हम दिल के बादशाह पर फ़कीर ये बताना कैसा !!

चार दीवारों में तो हो हर वक़्त महफूज तुम !
पर बिना सुकूं के दिन-रात में वो आशियाना कैसा !!

तेरे चाहने वाले सब हुस्न के कदरदान भरे !
पर कोई बदनाम शायर नो तो वो शामियाना कैसा !!

जब कदर तुझे जज्बातों की मेरे है ही नहीं !
अपनी मौजूदा अहमियत को तुझे समझाना कैसा !!

अपनी हुस्न की दौलत मैं तुम मगरूर हो तो !
फिर अपने हर इक दर्द तो तेरे सामने बताना कैसा !

तुम हर रोज ही तो इम्तिहाँ लेते हो मेरा योँ !
फिर किसी और का मुझे आखिर आजमाना कैसा !!

कभी आओ मजार पर किशोर की तो बताएँगे !
लगता है जमीन ओढ़ कर खुद को छुपाना कैसा  !!

‪#‎KishorPoetry‬ मैं इक शायर बदनाम

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