Sunday, June 28, 2015

वो क्या जाने

मेरे होने से या न होने से तेरे वजूद का होना क्या है
मालूम है इन शोहरतों को पा कर फिर खोना क्या है !!

बड़े महलों और मखमली चादर पर लेट कर भी
वो क्या कि जाने नींद का हर रोज खोना क्या है !!

किशोर की रूह को सकूँ है अब ये मान कर
जो अपना था ही नही खो दिया तो रोना क्या है !!

हर रोज तेरी खातिर जो नापाक गुनाह किये
जाना जब दोज़ख ही है तो इन्हें धोना क्या है !!

वो तो किसी और मांझी के साथ किनारे पर खडें हैं
न मालूम उन्हें एहसास खुद नाव को डुबोना क्या है !!

सुना है जागते हैं वो रोज किशोर की गजलें पढ़ कर
वो क्या जाने दो गज में हर रात सुकूँ से सोना क्या है !!

‪#‎KishorPoetry‬ मैं इक शायर बदनाम 

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