इन बादल जैसे छा जाना,
फिर रिम-झिम पानी बरसाना
मेघों को खाली कर के सारे
कण-कण रज के बस जाना
उफन-उफन के लहरों संग
मस्त नीर जब सफर करे
आखिर बस जल सागर में
जाकर कर के समां जाना
चुभते काँटों के बीच भी
बैठ कर के खिल जाना
इक क्षण में टूट कर भी
मंद-मंद से वो मुस्काना
यही है बस सार जीवन का
पर-सुख खातिर जी जाना
और अंत समय में जाकर भी
सब कुछ खो कर पा जाना
#KIshorPoetry मैं इक शायर बदनाम
फिर रिम-झिम पानी बरसाना
मेघों को खाली कर के सारे
कण-कण रज के बस जाना
उफन-उफन के लहरों संग
मस्त नीर जब सफर करे
आखिर बस जल सागर में
जाकर कर के समां जाना
चुभते काँटों के बीच भी
बैठ कर के खिल जाना
इक क्षण में टूट कर भी
मंद-मंद से वो मुस्काना
यही है बस सार जीवन का
पर-सुख खातिर जी जाना
और अंत समय में जाकर भी
सब कुछ खो कर पा जाना
#KIshorPoetry मैं इक शायर बदनाम
No comments:
Post a Comment