कैसा ये सर्द अँधेरा है,
जाने कितना दूर सवेरा है..
तन्हाई का डर भी है तो
संग यादों का पेहरा है...
कुछ भूले-बिसरे किस्सों में
धूमिल सा उस का चेहरा है..
पर...
न पाने की ख़ुशी है कुछ
न कुछ खोने का ही गम है...
फिर क्यों पलकों के कोने में
भीगा-बरखा का मौसम है..
अब तो बस जीते ही रहना...
यही इक मकसद मेरा है..
पर तन्हाई का डर भी है..
और संग यादों का पेहरा है...
©Kishor
जाने कितना दूर सवेरा है..
तन्हाई का डर भी है तो
संग यादों का पेहरा है...
कुछ भूले-बिसरे किस्सों में
धूमिल सा उस का चेहरा है..
पर...
न पाने की ख़ुशी है कुछ
न कुछ खोने का ही गम है...
फिर क्यों पलकों के कोने में
भीगा-बरखा का मौसम है..
अब तो बस जीते ही रहना...
यही इक मकसद मेरा है..
पर तन्हाई का डर भी है..
और संग यादों का पेहरा है...
©Kishor
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