जाने कितनी बार ये गरोंधे तोड़े हैं
कितनी बार कदम वापस मोड़े हैं
कभी छीना, तो कभी दिया भी हैं
कभी अपना सब लुटा कर जोड़े हैं
इस सदी के तूफ़ान में यूँ हमने
जाने कितने अपने पराये छोड़े हैं
कुछ को हम, तो कुछ हमें भूल गए
और कभी ये आंसू बेवजह फिजूल गए
न जाने कितनो को खुशिया बांटी हैं
जाने कितनों के लिए गम झेलें हैं
फिर भी सदी की इस दोड़ मैं आखिर
यों खड़े हम तनहा अकेले हैं
उस ख़ुशी को पाने के लिए
जाने कितने मील हम दोड़े हैं....
इस सदी के.....
कितनी बार कदम वापस मोड़े हैं
कभी छीना, तो कभी दिया भी हैं
कभी अपना सब लुटा कर जोड़े हैं
इस सदी के तूफ़ान में यूँ हमने
जाने कितने अपने पराये छोड़े हैं
कुछ को हम, तो कुछ हमें भूल गए
और कभी ये आंसू बेवजह फिजूल गए
न जाने कितनो को खुशिया बांटी हैं
जाने कितनों के लिए गम झेलें हैं
फिर भी सदी की इस दोड़ मैं आखिर
यों खड़े हम तनहा अकेले हैं
उस ख़ुशी को पाने के लिए
जाने कितने मील हम दोड़े हैं....
इस सदी के.....
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