Monday, January 13, 2014

जाने किस का कसूर था

सजाएँ सारी क़ुबूल की, पर जाने किस का कसूर था !
कहीं न कहीं इस दर्द की वजह, तू भी तो जरुर था...

मोती-मोती होते नयनों से, अब पलके भरी-भरी सी हैं !
कभी इन झरोखों में बसा, तू ही तो बस नूर था...

संग ही तो थे आज भी, खड़े फिर उसी चोराहे पे !
पर तू इंचों के फासलों में भी, मनो मीलों दूर था...

तेरा भी अहम् था ऊपर, मेरा अक्श कैसे खो दूँ !
वजह सिर्फ इक थी की, कोई तो मद में चूर था...

छोड़ो अब हम-तुम दोनों, क्यों फिर सब खता गिने !
इस झूठे इश्क के खेल में, तू भी तो मशहूर था...

#KishorPoetry © मैं इक शायर बदनाम

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