Sunday, January 12, 2014

शीर्षक: श्रेष्ठ वही बना है जग में !!

गरजते मेघों से डर कर !
पथ में चलना छोड़ दिया !! 
वो क्या जाने विजय पिपासा 
जिसने लड़ना छोड़ दिया !!
मंजिल को पा जाना तो 
बस मात्र एक चुनोती है..
श्रेष्ठ वही बना है जग में 
जिसने लक्ष्य ही पीछे छोड़ दिया...

लहरों के डर होते भी !
जिसने सिन्धु पार किया
आवश्यकता होने पर जिसने 
नया कोई आविष्कार किया
कोई बड़ी उपलब्धि नही है !!
ये बस कुछ स्वार्थ साधें हैं..
कुछ पाने के लालच में सब ने 
लेन-देन से व्यापार किया !!
महान तो वही कहलाया वसुधा में 
जिसने लहरों को ही मोड़ दिया 
और श्रेष्ठ वही बना है जग में 
जिसने लक्ष्य ही पीछे छोड़ दिया....

पद चिन्हों पर चल कर जो 
पताका को फेहराते हैं !!
दूजे के वीर-रस को ही 
अपने गीत सा गाते हैं
लिखे हुए कुछ नियमों को ही
जो बार-बार दोहराते हैं
वो इक बार तो जीवन में 
जीत को पा जाते हैं !!
पर इक दिन खुद को ही वो 
बना मजदूर सा पाते हैं
भीष्म भांति हर बंधन को 
जिसने पल में तोड़ दिया !!
बस श्रेष्ठ वही बना है जग में 
जिसने लक्ष्य ही पीछे छोड़ दिया....

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