हर काली रात अब, एक जंग सी लगती है
जाने क्यों ये जिन्दगी, अब तंग सी लगती है l
कदम कदम पे दुनिया के, पापों की इन सायों में
आप तस्वीर ही ऐनक में, अब स्याह रंग सी लगती है l
ये गलत-ये सही, जो है वजूद वो है नही..
अपना उसूल जेब में रख, ये मैं हूँ, कोई तू नही
मत थोप मुझ पर भी, शर्त किताबों में कही
कर-कर के तू करता रहे, मैं भी क्यों करूँ वही
तेरा करना-करना है और, मेरा करना मरना सा
तेरी हरकत तिलस्म अनोखा, मेरी अनंग सी लगती है
तेरी उल्फत-उल्फत है तो, मेरी रूह भी बोझ हैं क्यों
मेरी सांसे तुझ को जाने, क्यों बेढंग सी लगती हैं
कदम कदम पे दुनिया के, पापों की इन सायों में
आप तस्वीर ही ऐनक में, अब स्याह रंग सी लगती है l
जाने क्यों ये जिन्दगी, अब तंग सी लगती है l
कदम कदम पे दुनिया के, पापों की इन सायों में
आप तस्वीर ही ऐनक में, अब स्याह रंग सी लगती है l
ये गलत-ये सही, जो है वजूद वो है नही..
अपना उसूल जेब में रख, ये मैं हूँ, कोई तू नही
मत थोप मुझ पर भी, शर्त किताबों में कही
कर-कर के तू करता रहे, मैं भी क्यों करूँ वही
तेरा करना-करना है और, मेरा करना मरना सा
तेरी हरकत तिलस्म अनोखा, मेरी अनंग सी लगती है
तेरी उल्फत-उल्फत है तो, मेरी रूह भी बोझ हैं क्यों
मेरी सांसे तुझ को जाने, क्यों बेढंग सी लगती हैं
कदम कदम पे दुनिया के, पापों की इन सायों में
आप तस्वीर ही ऐनक में, अब स्याह रंग सी लगती है l
No comments:
Post a Comment