Sunday, January 12, 2014

क्या लिखूं...

जिस से मेरा अस्तित्व उजागर हो
जिस से पूरा शब्दों का सागर हो

क्या लिखूं...
की वो यादें वापस न आये,
की तेरा एहसास पास न आये


क्या लिखूं....
की रूह को सुकून हो जाये,
फिर जीने का इक जूनून हो जाये..

क्या लिखूं...
जो माँ फटकार जैसा हो 
जो पिता की पिटाई के प्यार जैसा हो

क्या लिखूं...
जो मेरी आंखे नम न हो
जिन शब्दों में कोई गम न हो 

क्या लिखूं....
जो ऋतू वसंत सी बहार हो,
की तेरे वापस आने के आसार हों 

क्या लिखूं...
जो जंगल की धीमी धूप सी हो 
जो तेरे ही जेसे रूप सी हो..

क्या लिखूं...
की मैं आराम से सो जाऊं 
तेरी जन्नत तक सेर कर आऊ

क्या लिखू... 
बस आखरी सफ़र की ईमारत हो
जो किशोर-ऐ-कब्र पर लिखी इबारत हो 
क्या लिखूं....

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