मैं गिरा भी,
टूटा भी.
काली रात में
सपना टूटा
भी,
कभी आगे निकला,
दुनिया से,
तो भीड़ में
पीछे छुटा
भी.
कभी कुछ बेगानों
ने साथ
दिया,
कभी अपनों ने
लूटा भी.
पर अरमान झुके
नहीं,
वो आज तक
रुके नही.....
जाने किस की
आस लगी
है,
इस मन बावरे
को...
कैसी ये प्यास
लगी है.
दिल बेसहेरे को....
बस अब तो
मैं हूँ,
और अब रुकते
कभी कदम
नही हैं.
होंठो पे बस
हंसी है....
दिल में यादें
भी कम
नही है....
चलना काम है,
बस चलते
रहना...
झुक जाऊ मौत
सो पहले.
इतना तो खुदखुशी
में भी
दम नही
है....
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