Sunday, January 12, 2014

प्यास

मैं गिरा भी, टूटा भी.
काली रात में सपना टूटा भी,
कभी आगे निकला, दुनिया से,
तो भीड़ में पीछे छुटा भी.

कभी कुछ बेगानों ने साथ दिया,
कभी अपनों ने लूटा भी.
पर अरमान झुके नहीं,
कदम जो बढे अनजान मंजिल पे.
वो आज तक रुके नही.....

जाने किस की आस लगी है,
इस मन बावरे को...
कैसी ये प्यास लगी है.
दिल बेसहेरे को....
बस अब तो मैं हूँ,
और अब रुकते कभी कदम नही हैं.
होंठो पे बस हंसी है....
दिल में यादें भी कम नही है....
चलना काम है, बस चलते रहना...
झुक जाऊ मौत सो पहले.
इतना तो खुदखुशी में भी दम नही है....

No comments:

Post a Comment