Sunday, January 12, 2014

बस इतनी सी ये कहानी थी

अभी कुछ और यादें थी, कुछ और कहानी थी
बहुत सी बातें थी, हो तुझको सुनानी थी !
वो काली रात का किस्सा, चाय की प्याली थी
मदमस्त घटायें वो, कितनी वो सुहानी थी !!

मैं उस पार खड़ा तुझ से अनजाना था
तू डरती बिजली से, खड़ी उधर अनजानी थी
छाते का तो बस, पास आने का बहाना था !
जो तुझे देखने की हसरत मिटानी थी !!

फिर अचानक तेरी आँखों में नमकीन सा पानी था
वो दर्द भरी पलकें, जो बिलकुल पहचानी थी !
तू बिन कहे कुछ चली गई, बरसात के साथ उस रात
और मैं भीगता रहा, तेरी यादों के साथ !

वो सच था, फरेब, या कोई मनमानी थी
या हुई किशोर संग, ये इक बेमानी थी !!
समझ नही पाया, क्या करूँ जो तू चली गई
तो मैं भी चल पड़ा सफ़र पे दूर तलक !
अब क्या गम और क्या ख़ुशी मनानी थी !!

अब तो बस ता-उम्र, इस कबर में बितानी थी....

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