Thursday, March 6, 2014

ग़ज़ल - पर मैं शराबी नही

लड़खड़ाते हैं कदम तो क्या, पर मैं शराबी नही 
अपने अश्कों को पीने में यों, कोई खराबी नही 

कि कभी तो हम भी, इस महफ़िल कि जान थे 
अब मेरे शायर उसे लगते, क्यों आफताबी नही ! 

तेरे जाने पे भी, मेरे प्यालों ने मुझे सम्भाला है 
बस हो गुनहगार काफी है, मेरे कोई जवाबी नही। …

तुम तो कहते थे कि, मेरे जाने पे खिलखिलाओगे 
चेहरा तो खुश है, पर तेरे होंठ क्यों हैं गुलाबी नही। …

इस मुकद्दर मैं तेरा आना, मेरी शान थी कभी। …
अब तो है फ़कीर बस किशोर, कोई नवाबी नही 

दो जाम के बाद निजात होती है तेरी यादों से 
और रहती कोई जहन में, फिर कोई बेताबी नही। …

कि लड़खड़ाते हैं कदम। .....

© #KCopyRight #KishorPoetry मैं इक शायर बदनाम ©

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