कलम तू कुछ
आज ऐसा
लिख,
पढने वाले को
विभोर कर
दे,
बसंत की पहली
बूंद की
भाँती,
मन को मृणाल-सम-मौर
कर दे,
कलम....
ह्रदय में उठते
समीर से
शब्द,
कागज के पटल
पे पूरे,
अश्रु की सियाही
से शोर
कर दे,
कलम.....
वेदना के क्षण
भुला कर,
उमंग की तू
भोर कर
दे,
तू खुद को
निश्चल रख
कर,
मुझे जन-ह्रदय
का चोर
कर दे,
कलम.....
कुछ भूत-वर्तमान
और भविष्य
से,
कुछ तू लिख
शब्द अदृश्य
से,
कुछ कल्पना, कुछ
सत्य से,
सब के मन
को झकझोर
कर दे,
कलम.....
रज से कुछ
प्रकाश लेकर,
रवि से कुछ
उल्लास लेकर,
चन्द्र की निशा-शीत भाँती,
कुछ वाक्य पिरो
तू पांति-पांति,
ऋतू वसंत के
जेसे तू
भी,
मेघा को घनघोर
कर दे,
कलम....
तम में भी
न छोड़
तू आश,
दीपक से लेकर
प्रकाश,
सबके मन को
पावन कर
के,
काम के टेल
दबे मनुष्य
को,
अपनी कविता से
किशोर कर
दे,
कलम तू कुछ
आज ऐसा
लिख,
पढने वाले को
विभोर कर
दे,
कलम....
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